Sunday, January 31, 2010

स्‍त्री भ्रूण हत्‍या

आज स्त्रियों को उसी सभ्य समाज से अपने अस्तित्व के लिए लडना पड रहा है जो उसे पूजता है। यह पाखंडी समाज अपनी जननी को ही मारने पर आमादा है। बेटी के नाम की कसमें खाने वाले ही उसे कष्‍ट देते हैं। बेटी को पराई कह उसे कभी स्वीकारा ही नहीं। आज मानव रूपी दरिंदे लडक़ी को जन्म लेने से पहले ही मार डाल रहे हैं। 'बालिका बचाओ' व सशक्तिकरण विषय पर चर्चाएं व सेमीनार तो बहुत होते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर बेटियां 'बेचारी' हैं। हमने उन्हें अबला बनाया है सबला नहीं । बच्चियों के खान-पान से लेकर शिक्षा व कार्य में उनसे भेदभाव होना परंपरा है। दु:खद है कि पढे लिखे लोग भी ऐसा ही करते हैं। यह दुखत है कि हमारे देश के सबसे धनी राज्य पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में कन्‍या भ्रूण हत्‍या सर्वाधिक है। देश की जनगणना-2001 के अनुसार एक हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है, जो एक चिंता का विषय है। इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। कुछ अन्य राज्यों ने अपने यहां इस घृणित प्रवृत्ति को गंभीरता से लिया और इसे रोकने के लिए अनेक प्रभावकारी कदम उठाए जैसे गुजरात में 'डीकरी बचाओ अभियान' चलाया जा रहा है। इसी प्रकार से अन्य राज्यों में भी योजनाएं चलाई जा रही हैं। यह कार्य केवल सरकार नहीं कर सकती है। बालिका बचाओ अभियान को सफल बनाने के लिए समाज की सक्रिय भागीदारी बहुत ही जरूरी है। abha singhbhrun hatya

1 comment:

Unknown said...

Yearly, so good poetry abha, hm to apke kayal ho gye....