Saturday, January 9, 2010

संतुष्‍टी और आनंद

जिस काम को करने में हमें संतुष्‍टी और आनंद मिले वही सुख है। हरेक के लिए सुख की परिभाषा अलग अलग होती है। किसी को मिहनत करने में सुख मिलता है तो किसी को धन कमाने में तो किसी को मौज मजा करने में। किसी को धार्मिक क्रिया कलापों में आनंद मिलता है।
पर ये सारे सुख कुछ समय के होते हैं। और आदमी एक काम के बाद सुख के लिए दूसरे के पीछे भागता है।
सोचा जाए तो सच्‍चा सुख कुछ प्राप्‍त करने में नहीं देने में है। किसी का काम बढकर करने में है। जिस व्‍यक्ति में दया, करूणा आदि के गुण निहित हैं वह परोपकारी मनुष्‍य ही सुखी है। मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है और सहायोग उसके जीवन का एक महत्‍वपूर्ण अंग है। हर आदमी को हमेशा एक दूसरे के सहयोग की आवश्‍यकता होती है और इस सहयोग के आदान प्रदान में ही सच्‍चा सुख है।

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