Tuesday, April 14, 2009

मेरी आंखों का नूर - आभा

लोग कहते हैंकि बेटे को जिंदगी दे दी मैंनेपर उसके कई संगी नहीं रहेजिनकी बड़ी बड़ी आंखेंआज भी घूरती कहती हैं-आंटी , मैं भी कहानी लिखूंगी अपनीउसकी आवाज आज भीगूंजती है कानों मेंबच्‍ची कैसी आवाज लगाई तूनेजो आज भी गूंज रही है फिजां मेंओहव्‍हील चेयर पर दर्द से तड़पती आंखें वेवह दर्द आज मेरी आंखों का नूर बन चमक रहा है